भारतीय इतिहास { indian history}
अभी हम डॉ दिनेश राठी की पुस्तक पढ रहे , आपको विस्तार से पढ़ना हो तो आप उनकी पुस्तक पढ सकते है।
——————————————————————————ऋगवेद — ऋक का अर्थ होता है , छन्दो और चरणों से युक्त मंत्र आर्यों को भय हुआ की समय के साथ कोई उनके धर्म और संस्कृति को कोई और रूप न दे देवे , इसलिए उन्होंने समस्त ऋचाओं को संगृहीत करके ऋग्वेद संहिता का निर्माण किया गया। ऋग्वेद में 10 मण्डल , 1028 सूक्त हैं , 21 छंद है। सूक्त की विशेषताएं —- 1– इसमें ऋषि का नाम अथवा गोत्र जिसने उसकी रचना की है। 2— इसमें उस देवता का नाम होता है , जिसकी उसमें स्तुती की गई है। ——————————————————————————सामवेद — साम का अर्थ होता है गान । सामवेद ऐसा वेद है जिसमें मंत्रो को यज्ञ इत्यादि में देवताओं की स्तुति करते हुए गाये जाते है। प्राचीन भारत में जो विशेषज्ञ सामवेद गाते थे , उन्हें उद्ग़ाता कहते थे। ——————————————————————————यजुर्वेद — यजु: का अर्थ है यज्ञ। इस वेद में अनेक प्रकार की यज्ञ विधियों का प्रतिपादन किया गया है। इसे अध्वयुवेद भी कहते है। ——————————————————————————अथवऺवेद —- इस वेद की रचना अथवाऺ ऋषि ने की थी। इसमें 40 अध्याय है , इसमें — ब्रह्मज्ञान , धर्म , समाज , निष्ठा , औषधि – प्रयोग , शत्रु – दमन, रोग – निवारण , जन्त्र – मन्त्र , टोना – टोटका , आदि अनेक विषय है। ——————————————————————————#indianhistory #veds #competitionexam #exam #history #rigveda #yajurveda #samaveda #atharvaveda
——————————————————————————पाषाण काल के क्रमिक चरण —— https://sabziimandi.com/2024/11/history-%e0%a4%87%e0%a4%a4%e0%a4%bf%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%b8/generalknowledge/laxman1512/4758/ —————————————————————————– TOPIC —- थोड़ा boring है पर एक बार समझ ले तो शायद BASE अच्छा हो जाए । ब्रह्म का अर्थ है —- यज्ञ । अत:यज्ञ के विषयों का प्रतिपादन करने वाले ग्रंथ “ब्राह्मण” कहलाये। —————————————————————————— उपनिषद — उप का अर्थ है ‘समीप’ और ‘निषद’ का अर्थ है बैठना। इसको ऐसे भी समझ सकते है, जिस रहस्य- विधा का ज्ञान गुरु के समीप बैठकर प्राप्त किया जाता था उसे उपनिषद कहते थे। 12 उपनिषद प्रमुख हैं —- केन, कठ, प्रशन, मुण्डक ,माडुक्य,ऐतरेय, तैतरीय , श्रेताश्वतर, छन्दोग्य , वृहदारण्यक , और कौषीतिकी । ——————————————————————————
वेंदाग —- अर्थात वेदों के अंग —- वेदों के 6 अंग है —- 1 —- शिक्षा , 2— कल्प , 3— व्याकरण , 4— निरूक्त , 5—- छंद , 6— ज्योतिष । 1 — शिक्षा — वैदिक स्वरों का विशुद्ध रूप से उच्चारण करने के लिए शिक्षा का निर्माण हुआ था थोड़ा सरल कर देते है —- हम लोग जो कुछ भी बोल रहे हैं, वह सब ध्वनि या स्वर है , इसको निर्धारित करने की प्रणाली शिक्षा। —————————– 2—- कल्प —- कल्प का अर्थ है विधी – नियम जिनमें विधी नियम का प्रतिपादन किया गया है , वह कल्पसूत्र कहलाते है। कल्पसूत्र के 3 भाग है —– 1— श्रोत सूत्र { सुल्व सूत्र } —- यज्ञ सम्बंधित विधि नियमों को बताते है वे श्रोत सूत्र कहलाते है , यज्ञों में बहुधा वेदियां और मण्डप बनाए जाते थे , इन्हें बनाने के लिए नाप – जोख की आवश्यकता पड़ती थी । ———————– 2 — गृह्य सूत्र —- जो सूत्र मनुष्य की समस्त लौकिक और पारलौकिक कतृव्यो का वर्णन करते है , गृह्य सूत्र कहलाते है । ———————- 3 — धर्म सूत्र —- जो सूत्र मनुष्य के विभिन्न धार्मिक , सामाजिक, एवं राजनीतिक अधिकारों और कतृव्यो का वर्णन करते है , वह धर्म सूत्र कहलाते है । —————————————————————————— 3— व्याकरण —- इसमें नामो और धातुओं की रचना , उपसर्ग, और प्रत्यय के प्रयोग, समासों, और सन्धियो आदि के नियम बनाए गए, इससे भाषा का रूप सुस्थिर हो गया । इस समय पाणिनि का सवृविदित व्याकरण ग्रंथ अष्टाध्यायी मिलता है पाणिनि की अष्टाध्यायी में 18 अध्याय है । इन सब अध्यायों में सूत्रों की संख्या 3863 है । इस प्रकार संस्कृत व्याकरण में पाणिनि , कात्यायन और पतंजलि का प्रमुख स्थान है । ——————————————————————————
4— निरूक्त —– जो शास्त्र यह बताता है कि अमुक शब्द का अमुक अर्थ होता है, उसे निरूक्त शास्त्र कहते है —————————————————————————– 5—- छंद —– वैदिक साहित्य में गायत्री, त्रिष्टुप, जगती, वृहती , आदि छंदों का प्रयोग मिलता है, इससे प्रतीत होता है , वैदिक काल में कोई छंद शास्त्र रहा होगा , परन्तु आज वह प्राप्य नही है । आज तो आचार्य पिंगल द्वारा रचित प्राचीन छंद शास्त्र ही प्राप्त होता है। —————————————————————————— 6—- ज्योतिष —– इस शास्त्र के प्राचीन आचार्यों में लगध मुनि का नाम प्रमुख है। इसके अतिरिक्त नारद संहिता में 18 आचार्यों का उल्लेख है —- ब्रह्मा, सूर्य, वसिष्ठ, अत्रि, मनु, सोम , लोमश , मरीचि , अंगिरा , व्यास , नारद , शौनक , भृगु , च्यवन , गर्ग , कश्यप , पराशर । —————————————————————————— #उपनिषद #वेदांग #ज्योतिष ——————————————————————————
——————————————————————————पाषाण काल { stone – age } मुख्य बिंदु पोस्ट —– https://sabziimandi.com/2024/11/%e0%a4%aa%e0%a4%be%e0%a4%b7%e0%a4%be%e0%a4%a3-%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b2/generalknowledge/laxman1512/4798/ —————————————————————————— बौद्ध धर्म ग्रंथ —– ब्राह्मण साहित्य की भांति बौद्ध साहित्य भी इतिहास निर्माण में महत्वपूर्ण है। बौद्धो के धार्मिक सिद्धांत प्रमुखतया त्रिपिटक है —- 1– विनयपिटक , 2– सुतपिटक , 3– अभिधम्म पिटक ————————– वूलर महोदय के मतानुसार ‘पिटक’ का अर्थ ‘टोकरी’ है ————————– 1– विनयपिटक —- इसमें भिक्षु और भिक्षुणियों के संघ एवं दैनिक जीवन सम्बन्धी आचार विचार , विधी – निषेध और यम नियम इत्यादि संगृहीत है। यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि त्रिपिटकों मे अभिधम्म पिटक सब से बाद का है, परन्तु यह कहना कठिन है कि शेष दो पिटको मे अधिक प्राचीन कौन सा है। —————————-
बौद्ध परम्परा के अनुसार विनयपिटक को त्रिपिटक सबसे अग्रिणी माना जाता है। ————————- विनयपिटक निम्नलिखित भागो में विभक्त किया जाता है —- 1— सुतविभंग — इसके दो उपभाग है — महाविभंग और भिक्षुणीविभंग 2— खन्धका — इसके दो उपभाग है , महावग्ग और चुल्लवग्ग 3— परिवार अथवा परिवार पाठ ——————————- 1— सुतविभंग —- इसका अर्थ है सूत्रों का टिका, वास्तव मे यह पाटिमोक्ख के 227 नियमों पर टिका है। पाटिमोक्ख कदाचित ‘प्रतिमोक्ष्य’ का रूपांतर है। इसमें बौद्धों के हेतु पाप – कर्मो एवं उनके प्रायश्चितों का संगठन है, इस प्रकार अनुशासन सम्बन्धी विधि – निषेधो और दण्ड – विधान ने बौद्ध सम्प्रदाय को एक संगठन के सूत्र में बाॅध दिया। —————————– 2—- खन्धकाओ —- इसमें संघीय जीवन के सम्बन्ध मे सविस्तार विधि निषेध है, सुतविभंग की अपेक्षा खन्धकाओ में चित्रित बौद्ध समुदाय का संगठन और जीवन – यापन अधिक विकसित और नियमबद्ध प्रतीत होता है , इनमें विधि – निषेधो का प्रतिपादन स्वयं महात्मा बुद्ध के मुख से कहानियों के रूप हुआ। इन विधी निषेधों का विकास एक समय में न होकर शनै: शनै: भिन्न समयो हुआ होगा, इनमें कुछ महात्मा बुद्ध के पूर्व के परिव्राजक – समुदाय के होंगे, कुछ स्वयं उनके समय के और अधिकांश का विकास उनकी मुत्यु के पश्चात हुआ होगा। ———————————
महावग्ग और चुल्लवग्ग दौनो में ही भिक्षुओं के संघीय एवं दैनिक जीवन के सम्बन्ध मे नाना प्रकार के विधि – निषेध एवं यम – नियम है। अन्तर एकमात्र इतना ही है कि महावग्ग में प्रमुख एवं अधिक महत्वपूर्ण विषयों का समावेश है जबकि चुल्लुवग्ग में गौण और अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण विषयों का महावग्ग में 8 अध्याय है और चुल्लवग्ग में 12 अध्याय है। ———————— 3—– परिवार अथवा परिवार पाठ —– यह प्रश्नोत्तरी के रूप मे है , विनय पिटक के अन्य भागों की अपेक्षा यह भाग कालांतर की रचना है , इसके 19 उपभाग है। ——————————————————————————
>note —- विनय पिटक के महत्वपूर्ण बिंदु आप ऊपर पढ सकते है ——————————————————————————#बौद्धधर्मग्रंथ #विनयपिटक #indianhistory #history —————————————————————————– अभी हम बौद्ध धर्म ग्रंथ पर चर्चा कर रहे , हमनें विनयपिटक पर already चर्चा कर ली, अब हम दुसरे पिटक सुतपिटक पर थोड़ी चर्चा कर रहे है।
2 — सुतपिटक —- बौद्ध साहित्य में सुत का अर्थ है — धर्मोपदेश { धर्म पर उपदेश } इस पिटक के 5 अंग { निकाय} है। 1— दीघनिकाय , 2— मज्झिमनिकाय , 3— संयुक्तनिकाय , 4— अंगुत्तरनिकाय , 5 — खुद्दकनिकाय —————————- 1— दीघनिकाय — इसके सुत अन्य निकायों के सुतो की अपेक्षा अधिक बड़े हैं। इसमें कुछ गध में है , और कुछ गध -पध मिश्रित गाथा। अधिंकाश सुतो में बौद्ध धर्म के सिद्धांत एवं सदाचारीता का प्रतिपादन किया गया है। इस निकाय का सबसे अधिक प्रसिद्ध सुत है , महापरिनिब्बान सुत है। वास्तव मे यह महात्मा बुद्ध के जीवन के अंतिम चरण की कथा है। इसकी विषय , भाषा, और शैली को देखते हुए यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि दीघनिकाय किसी एक लेखक अथवा एक काल की रचना नहीं है। ———————————- 2 — मज्झिमनिकाय —- इसके सुत न अधिक दीघृ है और न अधिक लघु। वे मध्यकार है। इसमें भी बौद्ध धर्म के विविध सिद्धांत के ऊपर व्याख्यान , वार्तालाप , और कथानक है। मज्झिमनिकाय के विभिन्न अंश भी भिन्न भिन्न लेखकों और कालो की रचना है। ———————————- 3— संयुक्तनिकाय — यह सुतो के संयुक्तो { वर्णों } का समुच्चय है । एक एक विषय के अनेक सुत है , इन्हीं समान विषयक सुतो का प्रत्येक संग्रह ‘ संयुक्त ‘ के नाम से प्रख्यात है । अत: संयुक्तनिकाय को ऐसे ही अनेक ‘ संयुक्तो’ का संकलन समझना चाहिए । प्रत्येक संयुक्त मे या तो एक ही विषय के सुत है, या एक ही देवता अथवा एक ही चरित्रनायक के है। इस निकाय में भी गघात्मक – पघात्मक दौनौ ही शैलियों का प्रयोग किया गया है। इसका विषय भी विविध है , कही महात्मा बुद्ध के जीवन की घटनाओं का वर्णन है तो कही देवी देवताओं और अन्य लोको की बात की गई। ———————————— 4—- अंगुत्तरनिकाय — इसके सुत 11 निपातों में संगठित है । यह संगठन संख्या के आधार पर किया गया है , 11 निपातों में क्रमश: 1 से लेकर 11 संख्या वाली वस्तुओं का उल्लेख किया गया है। उदाहरणार्थ —- तृतीय निपात में सवृत्र तीन संख्या वाली वस्तुओं के सम्बन्ध मे प्रवचन है , एक स्थान पर महात्मा बुद्ध भिक्षुओं को उपदेश देते है कि तीन वस्तुएं गुप्त रूप से कार्य करती है —– नारी , ब्राह्मणों के मंत्र , और मिथ्या सिद्धांत। इसी प्रकार इसी निपात में आगे कहा गया है कि तीन वस्तुएं प्रत्यक्ष रूप से प्रकाश करती है — चंद्रमा , सूर्य , और बौद्ध धर्म। ——————————— 5— खुद्दक निकाय — यह लघु ग्रंथो का संग्रह है। ये ग्रंथ स्वत: स्वतंत्र और पूर्ण है। ये विषय , भाषा , और शैली में भी नितान्त भिन्न है , इसमें प्रतीत होता है कि खुद्दक निकाय अपने पूर्णरूप में कालांतर की रचना है। इसके अंतर्गत 10 ग्रंथ आते हैं —– 1— खुद्दक पाठ 2—- धम्मपद 3—- उदान 4—- इतिवृतक 5—- सुतनिपात 6—- विमानवत्थु 7—- पेतवत्थु 8—- थेरगाथा 9—- थेरीगाथा 10—- जातक ——————————————————————————#बौद्धधर्म #सुतपिटक #भारतीयइतिहास #indianhistory #competitionexam #exam #sabziimandi
—————————————————————————— महापाषाण काल —–https://sabziimandi.com/2024/11/%e0%a4%ae%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%aa%e0%a4%be%e0%a4%b7%e0%a4%be%e0%a4%a3-%e0%a4%b8%e0%a4%82%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%95%e0%a5%83%e0%a4%a4%e0%a4%bf-megaliths-culture/generalknowledge/laxman1512/4860/ ——————————————————————————ताम्रपाषण संस्कृति —–https://sabziimandi.com/2024/11/%e0%a4%a4%e0%a4%be%e0%a4%ae%e0%a5%8d%e0%a4%b0-%e0%a4%aa%e0%a4%be%e0%a4%b7%e0%a4%be%e0%a4%a3-%e0%a4%b8%e0%a4%82%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%95%e0%a5%83%e0%a4%a4%e0%a4%bf-chalcolithic-cultures/generalknowledge/laxman1512/4864/?amp=1 ——————————————————————————अभिधम्मपिटक —– अगर आप अभी जुड़े हैं तो आपको बता दे हम बौद्ध धर्म और बौद्ध धर्म ग्रंथ पर बात कर रहे है। अभिधम्मपिटक —- अभि का अर्थ होता है , उच्चतर , अत: अभिधम्मपिटक का विषय धर्म तो है , परन्तु उसका विवेचन उच्चतर व्याख्या और दर्शन के रूप मे किया गया है। अभिधम्मपिटक में धम्मसंगणि , विभंग , धातुकथा , पुग्गलपंजति और कथावत्थु पर चर्चा हुई। इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण है कथावत्थु कथावत्थु में मत पुष्टि के निमित्त अनेक स्थानों पर विनयपिटक और सुतपिटक के उदाहरण दिए गए है। जिनसे सिद्ध होता है कथावत्थु की रचना इन दोनों पिटको के पश्चात ही हुई होगी। ———————————
अन्य पालि बौद्ध ग्रंथ —– मिलिन्दपन्हो , दीपवंश महावंश मिलिन्दपन्हो —– इसमें यूनानी नरेश मिलिन्द ( मीनेण्डर) और बौद्ध भिक्षु नागसेन का वार्तालाप है। मिलिन्द धार्मिक प्रवृत्ति का मनुष्य था , वह अपने संशयों एवं शंकाओं के निवारणार्थ किसी विद्वान से वाद विवाद करना चाहता था , अंत में स्थविर नागसेन के सम्पर्क में आया। ——————————— दीपवंश —- इसका नाम पढ लेना ——————————– महावंश —- इसकी रचना कदाचित महानाम नामक कवि ने लगभग पाॅचवी शताब्दी में की थी ——————————– संस्कृत बौद्ध ग्रंथ —- महावस्तु , ललित विस्तार , अवदान साहित्य , ——————————————————————————note —– ब्राह्मण धर्म ग्रंथ , बौद्ध धर्म ग्रंथ इस पर हमने हमारी जानकारी और ज्ञान के अनुसार चर्चा की है।
——————————————————————————बनास घाटी / आहड़ संस्कृति —– https://sabziimandi.com/2024/12/places-culture/generalknowledge/laxman1512/4930/?amp=1# ———————————————————————————————————————————————————— जैन धर्म ग्रंथ —— https://sabziimandi.com/2024/12/indian-history-%e0%a4%9c%e0%a5%88%e0%a4%a8-%e0%a4%a7%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%ae-%e0%a4%97%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%82%e0%a4%a5/generalknowledge/laxman1512/4939/?amp=1#
—————————————————————————— मुगल साम्राज्य ( 1526 से 19 वी सदी के मध्य) —— https://sabziimandi.com/2024/12/%e0%a4%ae%e0%a5%81%e0%a4%97%e0%a4%b2-%e0%a4%b8%e0%a4%be%e0%a4%ae%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%9c%e0%a5%8d%e0%a4%af-1526-%e0%a4%b8%e0%a5%87-19-%e0%a4%b5%e0%a5%80-%e0%a4%b8%e0%a4%a6%e0%a5%80/generalknowledge/laxman1512/5226/