— गणेश्वर – जोधपुरा संस्कृति —- ( 2800 ईसा पूर्व – से 2200 ईसा पूर्व ) गणेश्वर —– नीमकाथाना ( राजस्थान ) में कांतली नदी के उदगम स्थल पर गणेश्वर ताम्र पाषाण काल का महत्वपूर्ण केंद्र था। RATNA CHANDRA AGARWAL ने सन 1977 ईस्वी में इसका उत्खनन किया था। गणेश्वर ताम्रयुगीन सभ्यताओं की जननी है। गणेश्वर के लोग मुख्यतः शिकार पर तथा आंशिक रूप से कृषि पर निर्भर करते थे। गणेश्वर से—– 1— ताॅबे के तीर , 2—- भाले , 3— मछली पकड़ने के काॅटे , 4— चूड़ियां , 5— छैनी । इत्यादि वस्तुएं मिली है। ———————————————– जोधपुरा संस्कृति —– पूर्वी राजस्थान में साहिबी / साबी नदी के किनारे स्थित है। राजस्थान में जोधपुरा ( जयपुर ) एवं नोह ( भरतपुर ) से काले एवं लाल रंग के मृदभांड मिले है। जोधपुरा में नारंगी एवं लाल रंग के मृदभांड भी मिले है। ————————————————————————————————————————————————————बनास घाटी / आहड़ संस्कृति —– ( 2100 ईसा पूर्व – 1500 ईसा पूर्व ) बनास नदी घाटी की ताम्र पाषाण संस्कृति के केंद्र — आहड़ , गिलुन्द , मर्मी , एवं बालाथल थे । यह संस्कृति बनास नदी घाटी के आसपास ही विकसित हुई इसलिए इसे बनास संस्कृति भी कहते है। मर्मी ( चितौड़गढ़ ) से मिली पशुओं की हड्डियां के आधार पर कहा जा सकता है कि यह प्रमुखत: पशु पालक थे। ——————————————–

आहड़ सभ्यता एक ग्रामीण संस्कृति है , यहां काले व लाल रंग के बर्तन मिले थे। आहड़ का प्राचीन नाम ताम्रवती या ताम्बवती अर्थात तांबा वाली जगह है। आहड़ में सर्वप्रथम उत्खनन सन 1953 ईस्वी मे अक्षय कीर्ति व्यास ने किया था। सन 1954 से 1956 के बीच रत्न चन्द्र अग्रवाल ने उत्खनन किया। सन 1961 से 1962 के बीच ( H.D. SANKALIA ) ने यहां उत्खनन किया था। आहड़ सभ्यता के उत्खनन 15 वस्तुएं प्राप्त हुई —– 1— 6 ताम्र मुद्राए 2— तीन मुहरें 3— यूनानी भाषा के लेख से युक्त एक मुद्रा 4— गेहूं और चावल , ज्वार , बाजरा 5— पैरों से चलित आटा पीसने की चक्की 6— रसोई – घरों में सिलबट्टे 7— सूत कातने के चरखे 8— मिट्टी तथा ताॅबे के दीपक , एवं लोहे की वस्तुएं। आहड़ सभ्यता की मुख्य विशेषता टेराकोटा से बनी सामग्रियां है। टेराकोटा को (बनासियन बुल )की संज्ञा दी गई। ——————————————————————————गिलुन्द —- गिलुन्द राजस्थान के राजसमंद जिले में बनास नदी के किनारे स्थित है। इसका उत्खनन सन 1959-1960 में बी.बी.लाल के निर्देशन किया गया था। गिलुन्द एक मात्र ताम्र पाषाण स्थल है , जहां मकानों के निर्माण में पक्की ईटो के साक्ष्य मिले है। गिलुन्द आहड़ संस्कृति का स्थानीय केंद्र था। ——————————————————————————बालाथल —- उदयपुर में बालाथल भी आहड़ संस्कृति का केंद्र था। बालाथल की खोज 1962-1963 में वी. एन. मिश्र ने कि थी। वर्ष 1993-94 में वी.एन.मिश्र के नेतृत्व में फिर से उत्खनन कार्य शुरू किया गया था। बालाथल में दुर्गनुमा भवन एवं कुष्ठ रोग का शुरुआती प्रमाण मिला है। बालाथल में बड़ी संख्या मे पशुओं की हड्डियां मिली है। —————————————————————————– note —- ये पुरानी संस्कृति में समय को ऊपर से नीचे क्रम में क्यों लिखते है उदाहरण ( 2100 ईसा पूर्व से 1500 ईसा पूर्व ) अगर आप लोगों को मालूम हो तो मुझे भी जरूर बताएं , मैं भी सीख रहा हूं । —————————————————————————–#indianhistory #history #बनासघाटीसभ्यता #आहडसंस्कृति #competitionexam #exam #sabziimandi

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