जैन धर्म ग्रंथ
बौद्ध साहित्य के समान जैन साहित्य भी हमारे इतिहास निर्माण के लिए अति उपयोगी है। इसमें जैन आगम सर्वोपरि है। जैन धर्म में साधारणतया 12 अंग , 12 उपांग , 10 प्रकीर्ण , 6 छेद सूत्र , नन्दि सूत्र , अनुयोग द्वार और मूलसूत्र , जैन धर्म ग्रंथ की रचना अथवा संकलन किसी एक व्यक्ति अथवा काल का कार्य नही है। वास्तव मे इनकी रचना ईसा पूर्व चौथी शताब्दी से चल कर ईसा पूर्व छठी शताब्दी तक दीधकाल में भिन्न भिन्न संगतियों और व्यक्तियों के बड़े प्रयासों से हुआ था। इस प्रकार हम देखते है कि जैन – धर्म ग्रंथ किसी एक काल की रचना नहीं है , उसका संगठन भिन्न भिन्न कालो में हुआ , बहुत सम्भव है कि उनका आंशिक रूप महावीर स्वामी के शिष्यो ने ही संगठित किया हो।
कालान्तर मे उनका संशोधन एवं परिवर्तन भिन्न भिन्न संगतियों में होता रहा है।
आज का जैन आगम का जो आकार प्रकार है, वह प्रारंभिक आकार प्रकार से बहुत कुछ भिन्न है। नन्दि के अनुसार न्यायधम्म — में साढ़े तीन करोड़ पद होने चाहिए , परन्तु आज उसमें पदों की संख्या कम है । शीलांक मलयगिरि आदि टिकाकारो का स्पष्ट कथन है अमूक सूत्र ‘गलित’ और ‘दुलृभ’ है जैन धर्म के प्रमुख राजाओं के नाम —– श्रेणिक अजातशत्रु , उदयन , प्रधोत । ——————————————————————————IMPORTANT NOTE —- अब तक साधारण जानकारी या फिर एक बार पढ़ने TOPIC पर बात कर रहे थे, लेकिन अब हम QUESTION PAPER में QUESTION बनने लायक MATERIALS पर आ गए नीचे दी गई जानकारी में कई DIFFICULT WORDS है, जिन पर प्रशन बन सकता है । ——————————————————————————
जैन आगम के प्रमुख 12 अंग या सुत ——- 1— आचारांग सुत —- इस सुत के दोनों स्कन्धो में जैन भिक्षु के आचार-नियमो का उल्लेख है। 2— सूयगदंग सुत —- इस सुत मे विरोधी मतो का खड़न तथा जैन भिक्षुओं की जीवन प्रणाली का मण्डन है। 3— ढांणग सुत —– इस सुत मे बौद्ध अंगुत्तरनिकाय की भांति 1 से 10 तक की संख्याओं के आधार पर विविध प्रवचन है। 4— समवांयग सुत —- इस सुत मे भी बहुसंख्यक संख्याओं के आधार पर अनेक प्रकार के उपदेश है। 5— भगवती सुत —- इस सुत मे महावीर स्वामी के जीवन एवं कार्यकलापों के ऊपर प्रचुर मात्रा मे प्रकाश डाला गया है। 6— नायाथम्मकहा सुत —- इस सुत मे महावीर स्वामी की शिक्षाये संग्रहित है। 7— उवासगदसाओं सुत — इस सुत मे उपासक जीवन के विधि – निषेधो और आचार- विचारों का संग्रह है। 8— अन्तगडदसाओं सुत और अणुतरों ववाइयदसाओ सुत — इस सुत मे प्रख्यात भिक्षुओं की निर्वाण प्राप्ति का वर्णन है। 9— पण्हा – वागरणाइम सुत — इस सुत में यम – नियमो का उल्लेख किया गया है । 10— विवागसुयम सुत — इस सुत मे कर्म फल का प्रदर्शन है। 11— दिटिढवाय सुत — यह सुत विलुप्त हो गया है, दुसरे ग्रंथों में यत्र तत्र इसके उदाहरण मिलते है। ——————————————————————————आप लोगों के लिए एक प्रश्न —- नायाथम्मकहा क्या है ? समझदार को इशारा काफी है । —————————————————————————— कालान्तर मे प्राचीन जैन धर्म ग्रंथों के ऊपर समय समय पर अनेक व्याख्या ग्रंथ लिखे गए है ये व्याख्या ग्रंथ 5 प्रकार के है। 1— नियुक्ति — आगम के विभिन्न विधि – निषेधो को समझाने के लिए छोटी छोटी पधमयी व्याख्या की गई है , इन्हें नियुक्ति कहते है , ईन नियुक्तियों की संख्या 10 है। ये प्राकृत भाषा में है। 2—- भाषा — ये भी पध मे लिखे गए है , कदाचित भाष्यों की संख्या 11 थी । ये भी प्राकृत भाषा में है। 3— चूर्ण — इनकी भाषा प्राकृत और संस्कृत का सम्मिश्रण है , इससे प्रकट होता है कि जैन धर्माचार्य प्राकृत का परित्याग कर धीरे धीरे संस्कृत को अपनाने लगे थे। 4— टीका — ये अधिकांशतः संस्कृत में लिखी गई है , इस प्रकार ब्राह्मण व्यवस्थाकारो की भांति जैन व्यवस्थाकारो ने भी संस्कृत को अपने धर्म ग्रंथों का माध्यम बना लिया। ——————————— जैन धर्म के टीकाकार —– 1— हरिभद्र सूरि ( 705-77 ईसा पूर्व ) 2— शीलांक ( 832 ई. के लगभग ) 3— नेमिचन्द्र सूरी ( 11 वी शताब्दी ) 4— अभयदेव सूरी ( 11 वी शताब्दी ) 5— मलयगिरि ( 13 वी शताब्दी ) ——————————————————————————#indianhistory #history #जैनधर्मग्रंथ #competitionexam #exam #sabziimandi