हम सब गुजराती लाईफ स्टाईल की बड़ी तारीफ करते हैं, सप्ताह मे पांच दिन कमाना, और weekend पर धुमने निकल जाना।

अब इसके पीछे की कहानी हम समझते हैं, एक तो गुजराती तो धंधा तो खून मे, और जब तक पैसा धूमेगा धंधा भी चलेगा, 100 रूपये घर का खर्चा हो तो देखा देख बाहर वाला भी 50 रूपये तो खर्चा कर ही देता है। मतलब हर 100 रूपये पर 50 रूपये इकोनॉमी में ऐड।

अब आते हैं घुमने पर जब तक आदमी घुमेगा नही तो उसको कैसे पता चलेगा कौन सी चीज कहा मिलती है और कौन सी चीज की कमी यहाँ है तो मिलती है तो उठा लेने का और कम है तो एक गुजराती बैठा देने का।



अब वाईब्रेंट गुजरात करते हैं तो मेहमान नवाज़ी तो एकदम फस्र्ट क्लास होनी चाहिए तो देशभर मे घुमने का हर प्रदेश की कल्चर और टैडिशन को समझकर उसमें थोड़ा अपना बगार ( छोंका) लगाने का और अच्छे से थाली परोसने का।

जब तक मेहमान खुश प्रदेश के व्यापारी खुश और जब व्यापारी खूश तो जनता खूश क्योंकि व्यापार बढेगा तो जनता को रोजगार मिलेगा।

Note — हम यह सब रामायण को बोल रहे हैं वो इसलिए की हमे भी अपनी लाईफ स्टाईल को बदलना होगा, अपने अंदर के कंजूस मारवाड़ी को छोड़कर, खूशमिजाज मारवाड़ी बनना होगा, अच्छा खाओ और खिलाओ, मेहमान को अच्छे से अच्छा फील करवाओ,

यह आदत तो छोडनी होगी बाहरी है तो एकबार मे नीचोड़ ले, क्योंकि रिपोर्ट तो बाहर आती है और नम्बर भी खराब मिलते है, व्यापार बढाना है तो मेहमान को पावणा बोलो मत समझो क्योंकि पावणा खूशी खूशी घर जाऐंगे तो चार पावणा और आऐंगे और अपनी कमाई बढाकर जाऐंगे।

हम सिर्फ गोरे लोग को ही महत्व ज्यादा देते है जब बात मेहमान या पावणा की आती है हम भूल जाते हैं हमारे देश के लोग भी होटल का किराया उतना ही भरते है और टैक्सी का किराया भी, खाना तो थोड़ा ज्यादा ही खाते है तो थोड़ा धंधा बढाना सीखो खूद 100 खर्च करो तो पावणा 50 तो खर्च करेगा ही।

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